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विद्योदय प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता परिणाम – १ जुलाई २०२२ डाउनलोड करे
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विद्योदय युवा महासंघ

वर्तमान परिपेक्ष्य में सामाजिक क्षेत्र में , धार्मिक क्षेत्र में एक संगठन का अपना महत्त्व होता है , संगठन जो होता है वो एक सूत्र को लेकर चलने वाला होता है और सूत्र जो होते है वो संगठन का एक आधार स्तम्भ होते है । आपने जो भाव रखा है भोपाल में एक ऐसे संगठन का निर्माण हो जो एकता के सूत्र मे समस्त दिगंबर जैन समाज को पिरो कर के एकत्रित करके माला के रूप में गुंथे उसके लिए आवश्यक है कि सबसे पहले आपके अंदर समर्पण का भाव आये।

भोपाल नगर में निवासरत समस्त जैन समाज के युवाओं को एकता के सूत्र में पिरोने के लिए "विद्योदय जैन युवा महासंघ" का गठन किया गया हैं । विद्योदय युवा महासंघ भोपाल जैन समाज के १५ से ४५ वर्ष की आयु वर्ग के युवाओं का समूह हैं , जिसका उद्देश्य देव शास्त्र गुरू के प्रति समर्पण भाव के साथ जैन धर्म की प्रभावना एवं हमारे (सामर्थी )बंधुओं की सेवा और सहभावना जाग्रत करना है ।

सेवा

सेवा का तो सेवा किसकी , तो सेवा सबसे पहले अपने आपकी , अपने आपके साथ साथ जैन दर्शन मे स्व और पर के कल्याण की बात की गई है । स्व और पर के कल्याण मे सेवा सबकी , सेवा किसकी सेवा प्राणी मात्र की । तो सेवा किसकी करना है तो सेवा का जो उद्देश्य आपने रखा है सच्चे देव , शास्त्र और गुरु इनकी सेवा करना , उनकी पूजा वैयावृत्ति करना और इनकी सेवा के साथ साथ समाज जन की ,जो अपने समाज के वर्ग है जिनको सेवा की आवश्यकता है उनकी सेवा , सेवा किसकी तो प्राणी मात्र की सेवा । तो हम सेवा के भाव के साथ जब हमारे पास समर्पण का भाव आएगा तब हमारे अंदर सेवा का गुण अपने आप विकसित होगा । तो सच्चे देव , शास्त्र, गुरु की सेवा वैयावृत्ति यही बहुत बड़ी धर्म प्रभवना का माध्यम है , इनके प्रति सेवा का भाव और प्राणी मात्र के प्रति सेवा का भाव ।

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समर्पण

दूसरा आपने जो सूत्र रखा है वह रखा है समर्पण । समर्पण का भाव अर्थात हमने जो भी संगठन को बनाने के पीछे भाव रखे है उस भाव के प्रति समर्पित किसके प्रति समर्पण समाज के प्रति समर्पण , अपने स्वयं के प्रति समर्पण , अपने धर्म के प्रति समर्पण , अपने गुरु के प्रति समर्पण । हम जब तक समर्पित भाव से आगे नही आएंगे तब तक हमारा समर्पण का भाव अधूरा है और संगठन का मुख्य सूत्र समर्पण है । हमें अपने संगठन को आगे ले जाने के लिए अपने स्वयं के प्रति और अपने संगठन के प्रति समर्पित होना पड़ेगा , जैसे ही हमारे अंदर समर्पण का भाव आएगा तो हम इस संगठन को बहुत ऊंचाइयों तक ले जा सकते है ।

समर्पण

तीसरा आपका जो लक्ष्य है वो है सहयोग । तो सहयोग किसका एक सूत्र आता है न धर्मे: धार्मिके: बिना अर्थात धर्म कब तक है जब तक स्वधर्मी है या धर्म को मानने वाले है । तो धर्म को मानने वाले रहेंगे तो धर्म रहेगा दोनों एक दूसरे पर आश्रित है । भक्त है तो भगवान है और भगवान है तो भक्त है तो एक दूसरे के प्रति सहयोग का भाव । सहयोग का भाव कैसा हो , तो हमारे जो साधर्मी जन है उनके प्रति सहयोग का भाव , समाज के प्रति सहयोग का भाव , देश के प्रति सहयोग का, सेवा का, समर्पण का भाव और अपने जिनायतनो के प्रति सहयोग का भाव , अपने जिन आयतन में रहने वाले साधर्मी बंधु के प्रति सहयोग का भाव । सहयोग का क्षेत्र बहुत बड़ा है , आप जिस क्षेत्र में चाहे तो सहयोग कर सकते है , आप शिक्षक के रूप मे अपने समाज जन का सहयोग कर सकते हैं । आप शिक्षा के साथ चिकित्सा के क्षेत्र में भी अपने समाज जन का और ऐसे भी ऐसे बहुत से समाजोत्थान के क्षेत्र है जिनमे आप सहयोग की भावना रख सकते हैं । तो सेवा समर्पण और सहयोग ये तीन सूत्र जो आपने रखे हैं ये बहुत ही महत्वपूर्ण है इनमें आपकी पूरी बात समाहित है । आपके अंदर जितना अनुशासन रहेगा ,आपके अंदर जितनी एकता रहेगी , आपके अंदर समय के प्रति जितनी जागरूकता रहेगी और आपके अंदर बड़ो के प्रति सम्मान का भाव और बड़ो का छोटों के प्रति वात्सल्य का भाव रहेगा । तो ये 3 सूत्र जो आपने रखे है ये 3 सूत्र आपको आपके लक्ष्य तक ले जाने में सहयोग करेंगे ।

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श्री १०८ संभव सागर जी महाराज

एक पथ्यहो ,एक लक्ष्य हो, भाव एकता, हृदय सत्य हो,

एक ताजगी, एकता जगी , बात एकता, संग हो सभी

सेवा धर्म हो , सेवा कर्म हो , भाव समर्पण, धर्म मर्म हो,

सहयोग भाव की , भावना रहे, मैत्री -प्रेम-सद्भाव , उर वहे,

अनुशासन अरु, भाव विनय हो , जैन धर्म की , सदा विजय हो ,

एक ही नारा, हृदय को प्यारा, सत्य – अहिंसा धर्म हमारा ,

जियो और जीने दो, सब को , सकल विश्व , फैले उजियारा,

सेवा,समर्पण , सहयोग , भावना, त्याग, तपस्या , जिनधर्म साधना ,

संकल्प, समन्वय, सदाचार से , विद्योदय जैन युवा महासंघ परिकल्पना ,

निष्पक्ष भावना, संभव साधना , निष्काम काम हो , सदा प्रेरणा,

सेवा भाव ही, सदा लक्ष्य हो, मैत्री भावना, धर्म पथ्य हो,

सत्य,समर्पण, अरु त्याग हो , साधर्मी प्रिय , प्रभु वीतराग हो ,

विद्योदय जैन युवा महासंघ का , सफल हुआ आगाज ।

सहयोग, समर्पण, सेवा ही , रखे धर्म की लाज।

विद्योदय युवा महासंघ

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युवाओं को अपनी प्रतिभा एवं योग्यता को निखारने एवं सामाजिक उत्थान के लिए मंच देना ।

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जैन धर्म की प्रभावना एवं प्रचार-प्रसार करना और समाज की व्यवस्थाओं में सहयोग करना ।

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स्वस्थ, सम्पन्न, खुशहाल, स्वाभिमानी जैन समाज के लिए कार्य करना ।

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समाज के प्रत्येक जरूरतमंद व्यक्ति को रोजगार, शिक्षा, व्यवसाय एवं स्वास्थ्य के लिए सहयोग करना ।

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जन स्वास्थ्य, रोजगार, शिक्षा, सामाजिक सौहाद्र, हित उपदेशक समाज बनाना ।

श्री १०८ निष्पक्ष सागर जी महाराज

गुरु मुख से

आराध्यों के प्रति, परिवार समाज के प्रति जब समर्पण का भाव आ जायेगा तो निश्चित रूप से सेवा की भावना जाग्रत होगी, सेवा किसकी, तो देव शास्त्र गुरू के साथ साथ समाज एवं राष्ट्र की, सब की, प्राणी मात्र की। यह संभव है जब आप निःस्वार्थ भाव के साथ सहयोग के लिये तैयार हो । आप एकता के सूत्र में बंध कर स्व-पर कल्याण की भावना को विकसित करते हुये, विनय वात्सल्य जैसे गुण आप में हो तथा अनुशासन को लेकर आगे बढ़ेगें तो निश्चित रूप से आप अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल होंगे। किसी भी संगठन के संचालन में एकता, अनुशासन और समय के प्रति पाबंद होना अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है। आज के परिवेश में समाज की युवा पीढ़ी – बाहरी चका चौंध, भौतिकता, कृत्रिमता, शिक्षा अध्ययन आदि के कारण धार्मिक मूल्यों से जल्दी समझौता कर रही है और उनसे दूरी बना रही है ऐसे माहौल को देखते हुए, एक विचार आया क्‍यों न इनको वर्तमान सोच के साथ ही जोड़ कर पुनः धार्मिक क्रियाओं में लगाया जाये, और सामने आयी `विद्योदय प्रश्नोत्तरी ‘ की परिकल्पना योग से अवसर भी अच्छा है, पूज्य आचार्य भगवन गुरूवर 108 विद्यासागर जी मुनिराज का 50 वाँ स्वर्णिम आचार्य पदारोहण दिवस, “जिन शासनाचार्य स्वर्णिम महोत्सव” की इस पावन मंगल बेला पर आज इसके माध्यम से वर्तमान युवा पीढ़ी धर्म के साथ साथ समाजिक ज्ञान का भी अध्ययन करें और अपनी धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिकता से परिचित हो, यह भी एक सहयोग की भावना है कि कैसे भी हो हम अपने सांस्कृतिक मूल्यों से जुड़े रहें । अपनी संस्कृति से परिचित होते हुये अपने इस कुल व मानव पर्याय की सार्थकता व महत्व को जाने, सबके कल्याण की भावना के साथ, गुरूजी के कुछ सूंत्र वाक्य को याद करता हूँ: –
एक से नही, एकता से काम लो, काम कम हो।
दीप अनेक, प्रकाश में प्रकाश, एकमेक सा।
पूरक बनों, सिंह से वन सिंह, वन से बचा।
स-आशीर्वाद

पूज्य मुनि श्री 108 निष्पक्षसागर जी मुनिराज

पूज्य मुनि श्री 108 निष्कामसागर जी मुनिराजश्री

तपस्या में सर्वश्रेष्ठ हैं आचार्यश्री विद्यासागरजी

भारत भूमि के प्रखर तपस्वी, चिंतक, कठोर साधक, गौरक्षक, लेखक, महाकवि, राष्ट्रहित चिंतक आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज का आज अवतरण दिवस है। आपका जन्म कर्नाटक के बेलगाम (सदलगा) जिले के ग्राम चिक्कोड़ी में आश्विन शुक्ल पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा), 10 अक्टूबर 1946, विक्रम संवत् 2003 को हुआ था। आपका पूर्व का नाम विद्याधर था। आपको आचार्य श्रेष्ठ महाकवि ज्ञानसागरजी महाराज का शिष्यत्व पाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।

विद्योदय युवा महासंघ में दान राशि जमा करने हेतु क्यू आर कोड स्कैन करे पेमेंट एप्प से

संस्था का नाम

विद्योदय जैन युवा महासंघ (रजि.) भोपाल

पेन नंबर

AAGAV4926L

बैंक नाम एवं शाखा

Yes Bank Mp Nagar ,Bhopal

बैंक खाता नंबर

011994600001124

बैंक आई.एफ.एस.सी

YESB0000119

विद्योदय प्रश्नोत्तरी नियमावली

विद्योदय प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता परिणाम – १ जुलाई २०२२ डाउनलोड करे
  • सभी परीक्षाएं ऑनलाईन माध्यम से संपन्न होंगी।
  • परीक्षा का आयोजन विद्योदय की वेबसाइट पर किया जावेगा।
  • परीक्षा की लिंक विद्योदय की वेबसाइट पर २.५घंटे के लिये खोली जावेगी। जिसका समय आयुवर्ग 6 से 18 वर्ष के लिए दोपहर 1:00 से 3:30 और 18 वर्ष से ऊपर वालो के लिए 4:00 से 6:30 तक रहेगा
  • परीक्षा से जुड़ी महत्वपूर्ण सूचनाएं वेबसाइट पर दी जावेगी।
  • प्रश्नपत्र हल करने के लिए 30 मिनिट का समय रहेगा।
  • सभी प्रश्न विद्योदय प्रश्नोत्तरी से आएंगे जिसे आप वेबसाइट से डाउनलोड कर सकते है ।
  • प्रत्येक प्रश्न 2.5 अंक का रहेगा। चारो त्रैमासिक परीक्षाओं में प्रत्येक वर्ग से प्रथम , द्वितीय एवं तृतीय विजेताओं का चयन किया जायेगा। एवं वार्षिक परीक्षाओ के आधार पर भी विजेताओं का चयन होगा ।
  • प्रत्येक वर्ग से प्रथम , द्वितीय एवं तृतीय विजेताओं का चयन किया जायेगा।
  • विजेताओं को आचार्य श्री के 51 वें आचार्य पदारोहण दिवस पर पुरुस्कृत किया जायेगा।
  • एक से अधिक विजेता होने पर ड्रॉ के माध्यम से चयन किया जायेगा।
  • प्रश्नोत्तरी परीक्षा के आयोजन एवं परी क्षा परिणाम से संबंधित सभी निर्णय ‘विद्योदय जैन युवा महासंघ ‘ द्वारा लिए जायेंगे एवं वे सर्वमान्य होंगे।